भारत-यूके व्यापार समझौता: कार्बन टैक्स और रीबैलेंसिंग की मांग पर गहराई से नजर.
भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) की वार्ता एक महत्वपूर्ण चरण में है, लेकिन यूके का प्रस्तावित कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM), जो 1 जनवरी, 2027 से लागू होगा, इस समझौते की राह में सबसे बड़ी बाधा बनकर उभरा है। यह कार्बन टैक्स भारत के कार्बन-गहन निर्यात, जैसे इस्पात, सीमेंट, एल्यूमीनियम, उर्वरक, और हाइड्रोजन, पर असर डालेगा। भारत ने इस टैक्स के प्रभाव को कम करने के लिए "रीबैलेंसिंग" की मांग की है, जिसका उद्देश्य भारतीय उद्योगों को होने वाले नुकसान की भरपाई करना और व्यापारिक संतुलन बनाए रखना है। आइए, इस विषय पर और विस्तार से जानते हैं।
यूके का CBAM: इसका ढांचा और उद्देश्य:
यूके का CBAM एक पर्यावरणीय नीति है, जिसका लक्ष्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना और "कार्बन लीकेहट" को रोकना है। कार्बन लीकेहट तब होता है, जब उच्च कार्बन उत्सर्जन वाले उद्योग कम कड़े पर्यावरणीय नियमों वाले देशों में उत्पादन स्थानांतरित कर देते हैं। CBAM के तहत, यूके आयातित वस्तुओं पर उनके उत्पादन के दौरान होने वाले कार्बन उत्सर्जन के आधार पर कर लगाएगा। यह कर यूके के एमिशन ट्रेडिंग स्कीम (ETS) से जुड़ा होगा, जो घरेलू उद्योगों पर कार्बन मूल्य निर्धारित करता है।
CBAM शुरू में सात क्षेत्रों पर लागू होगा:
- इस्पात और लोहा
- सीमेंट
- एल्यूमीनियम
- उर्वरक
- हाइड्रोजन
- सिरेमिक
- कांच
इसके तहत, आयातकों को आयातित वस्तुओं में निहित प्रत्यक्ष (उत्पादन प्रक्रिया से) और अप्रत्यक्ष (बिजली उत्पादन से) उत्सर्जन की गणना करनी होगी। कर की राशि यूके ETS के आधार पर निर्धारित होगी, और आयातक को इसकी स्व-आकलन करनी होगी।
भारत पर CBAM का प्रभाव:
भारत के लिए CBAM एक गंभीर चुनौती है, क्योंकि इसके प्रमुख निर्यात क्षेत्र कार्बन-गहन हैं। 2022 में, भारत ने यूके और यूरोपीय संघ (EU) को लगभग 8.2 बिलियन डॉलर मूल्य के इस्पात, लोहा, और एल्यूमीनियम का निर्यात किया था।
CBAM लागू होने पर:
- लागत में वृद्धि: भारतीय निर्यात पर 20-35% तक अतिरिक्त कर लग सकता है, जो वर्तमान में 2% से कम टैरिफ का सामना करते हैं। इससे भारतीय उत्पाद यूके के बाजार में कम प्रतिस्पर्धी होंगे।
- बाजार हिस्सेदारी पर जोखिम: उच्च लागत के कारण यूके में भारतीय निर्यात की मांग घट सकती है, और भारतीय निर्यातक अन्य बाजारों की तलाश करने को मजबूर हो सकते हैं।
- MSMEs पर असर: छोटे और मध्यम उद्यम (MSMEs), जिनके पास स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की क्षमता सीमित है, विशेष रूप से प्रभावित होंगे।
इस्पात उद्योग, जो वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 8% हिस्सा है, विशेष रूप से जोखिम में है। भारत का इस्पात उत्पादन वैश्विक औसत से 12% अधिक कार्बन उत्सर्जन करता है, जिससे CBAM के तहत भारतीय इस्पात निर्यात को भारी कर का सामना करना पड़ सकता है।
भारत की "रीबैलेंसिंग" मांग: गहराई से समझें
भारत ने CBAM के प्रभाव को कम करने के लिए "रीबैलेंसिंग" तंत्र की मांग की है, जिसे FTA के "सामान्य अपवाद" अध्याय में शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यूके भारतीय उद्योगों को होने वाले नुकसान की भरपाई करे और विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत के खिलाफ विवाद न उठाए।
भारत की प्रमुख मांगें:
- CBAM से छूट या लंबी अवधि: भारत ने विकासशील देश के रूप में विशेष विचार की मांग की है, जिसमें CBAM से पूर्ण छूट या लंबी过渡 अवधि शामिल है।
- कार्बन उत्सर्जन मानकों का समन्वय: भारत चाहता है कि उसके अपने कार्बन कर को यूके द्वारा मान्यता दी जाए, ताकि दोहरा कराधान टाला जा सके।
- नुकसान की भरपाई: यदि CBAM से भारतीय निर्यात को नुकसान होता है, तो भारत चाहता है कि यूके व्यापारिक रियायतों के माध्यम से इसकी भरपाई करे।
भारत का तर्क है कि CBAM "साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारी" (CBDR) के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जो पेरिस समझौते का आधार है। भारत, जो वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का केवल एक-सातवां हिस्सा योगदान देता है, का मानना है कि विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन के लिए अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
FTA वार्ता की स्थिति: हाल के अपडेट
भारत और यूके के बीच FTA वार्ता 2024 में भारत और यूके में हुए आम चुनावों के कारण रुकी थी। हालांकि, फरवरी 2025 में 15वें दौर की वार्ता फिर से शुरू हुई, जिसमें केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और यूके के व्यापार मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स ने मुलाकात की।
कुछ प्रमुख बिंदु:
- CBAM एक प्रमुख मुद्दा: भारत ने CBAM को FTA वार्ता में शामिल करने पर जोर दिया है, जो पहले अलग रखा गया था ताकि वार्ता को तेज किया जा सके।
- अनसुलझे मुद्दे: वीजा नीति, टैरिफ छूट, और पर्यावरणीय मानकों पर मतभेद बरकरार हैं। भारत कुशल श्रमिकों के लिए वीजा में छूट और कुछ वस्तुओं पर शुल्क-मुक्त पहुंच चाहता है, जबकि यूके इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बाजार पहुंच चाहता है।
- समयसीमा: दोनों देश जल्द से जल्द समझौते को अंतिम रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि CBAM जैसे जटिल मुद्दों के कारण और समय लग सकता है।
भारत की रणनीति और वैश्विक संदर्भ
भारत CBAM को न केवल यूके के साथ, बल्कि EU के साथ भी एक गैर-टैरिफ अवरोध के रूप में देखता है। EU ने पहले ही 2023 से CBAM लागू करना शुरू कर दिया है, जिसके तहत 2026 से कर वसूला जाएगा। भारत ने EU के CBAM को WTO में चुनौती देने की योजना बनाई थी, लेकिन अभी तक औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की है, क्योंकि दोनों पक्ष FTA वार्ता में व्यस्त हैं।
भारत की रणनीतियां:
- WTO में चुनौती: भारत का मानना है कि CBAM WTO के विशेष और विभेदित उपचार (SNDT) प्रावधानों का उल्लंघन करता है, जो विकासशील देशों को लंबी समयसीमा और रियायतें देता है।
- घरेलू कार्बन मूल्य निर्धारण: भारत एक मजबूत घरेलू कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली विकसित कर रहा है, जैसे कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), जो 2026 से चार कार्बन-गहन क्षेत्रों पर लागू होगी। इससे भारतीय निर्यात पर CBAM शुल्क कम हो सकता है।
- निर्यात बाजारों में विविधता: भारत को EU और यूके पर निर्भरता कम करने के लिए एशिया, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका जैसे नए बाजारों की तलाश करनी चाहिए।
- हरित प्रौद्योगिकी में निवेश: भारत को अपने उद्योगों को डीकार्बोनाइज करने के लिए स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करना होगा। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त और तकनीकी सहायता की आवश्यकता होगी।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और अन्य देशों की प्रतिक्रिया
CBAM को लेकर भारत अकेला नहीं है। अन्य विकासशील देश, जैसे चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, और तुर्की, ने भी CBAM को व्यापार अवरोध और CBDR सिद्धांत के उल्लंघन के रूप में आलोचना की है।
- चीन: चीन ने अपने राष्ट्रीय ETS को विस्तार देने की घोषणा की है, जिसमें सीमेंट, इस्पात, और एल्यूमीनियम शामिल होंगे, ताकि CBAM शुल्क कम किया जा सके।
- अफ्रीका: CBAM से अफ्रीकी निर्यात, विशेष रूप से एल्यूमीनियम और इस्पात, को भारी नुकसान होने की आशंका है, जिससे क्षेत्रीय GDP में 0.5% की कमी आ सकती है।
- विकसित देश: कनाडा, जापान, और अमेरिका भी समान कार्बन करों पर विचार कर रहे हैं, जिससे वैश्विक व्यापार पर और दबाव बढ़ सकता है।
चुनौतियां और अवसर
चुनौतियां:
- प्रतिस्पर्धात्मकता का नुकसान: CBAM भारतीय निर्यात की कीमत बढ़ाएगा, जिससे यूके और EU में बाजार हिस्सेदारी कम हो सकती है।
- नीतिगत बदलाव का दबाव: यूके और EU के पर्यावरणीय मानक भारत को अपनी घरेलू नीतियों, जैसे श्रम और बौद्धिक संपदा अधिकार, में बदलाव करने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
- MSMEs की सीमाएं: छोटे उद्यमों के लिए CBAM की अनुपालन आवश्यकताएं, जैसे उत्सर्जन की रिपोर्टिंग, महंगी और जटिल हो सकती हैं।
अवसर:
- हरित अर्थव्यवस्था की ओर कदम: CBAM भारत को अपने उद्योगों को डीकार्बोनाइज करने और हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
- नए बाजारों की खोज: भारत अन्य क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाकर CBAM के प्रभाव को कम कर सकता है।
- द्विपक्षीय सहयोग: भारत और यूके CBAM के प्रभाव को कम करने के लिए संयुक्त अनुसंधान और विकास परियोजनाओं पर काम कर सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत-यूके FTA दोनों देशों के लिए आर्थिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन CBAM जैसे पर्यावरणीय उपाय इसकी राह में चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं। भारत की "रीबैलेंसिंग" मांग एक रणनीतिक कदम है, जो CBAM के प्रभाव को कम करने और भारतीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखने की कोशिश करता है। हालांकि, इसके लिए भारत को न केवल कूटनीतिक स्तर पर मजबूत रुख अपनाना होगा, बल्कि घरेलू स्तर पर स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली में निवेश करना होगा।
आने वाले महीनों में भारत और यूके के बीच वार्ता इस समझौते के भविष्य को निर्धारित करेगी। यदि दोनों देश आपसी सहयोग और लचीलेपन के साथ आगे बढ़ते हैं, तो यह समझौता न केवल द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर टिकाऊ व्यापार के लिए एक नया मॉडल भी प्रस्तुत कर सकता है।
आपके विचार: क्या भारत को CBAM के खिलाफ WTO में जाना चाहिए, या हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर ध्यान देना चाहिए? अपनी राय साझा करें।